Wednesday 14 September 2011

बस यूँही आज़ाद रहना अच्छा लगता है


सुबह 11 बजे उठना,
एक हडबडाहट में घडी की और मुड जाना 
मसलकर आँख फिर चुपके से सो जाना 
बस यूँही आज़ाद रहना अच्छा लगता है 

न काम पर जाने की जल्दी 
न जबरदस्ती की पढाई
कभी इंग्लिश, कभी फ्रेंच, कभी theater 
तो कभी होने पर जेब खली, मज़े से फ्रीलांस करना
बस यूँही आज़ाद रहना अच्छा लगता है 




देर रात तक किसी से बात करने की
न फुर्सत है, न बंदिश है 
जल्दी सोना और देर से उठना
बस यूँही आज़ाद रहना अच्छा लगता है 

कभी टटोलना खुद को 
और जिंदगी के बारे में हज़ारों सवाल करना
फिर मारकर ठहाका, सपनों की दुनिया में लौट आना 
बस यूँही आज़ाद रहना अच्छा लगता है 

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